Intezaar Ki Raat (The Night of Waiting) | इंतजार की रात
नज़रों से वार किया उसने, घाव दिए हरे-हरे,
सोचा था मर जाएंगे, पर हम अब तक नहीं मरे,
दर्द तो दिया लेकिन इल्जाम भी हमें मिल गया,
इश्क़ की छोटी सी कहानी, अफसाना बन गया!
Intezaar Ki Raat (इंतजार की रात)
आज से लगभग 19 साल पहले,
जब आँखों ने उसे देखा पहली बार,
दिल ने कहा – यही है अपनी दुनिया,
मोहब्बत का यह सिलसिला चलता रहा…
पाँच साल तक मोहब्बत सजती रही,
हर मुलाकात एक नया एहसास देती रही,
पर जब परदेस गया मैं कुछ बनने,
वापस आया तो मोहब्बत बदलती मिली…
दूरियाँ अच्छी नहीं होती, ये दिल समझता है,
पर मजबूरियाँ भी तो अपनी जगह सच होती हैं,
मोहब्बत सिर्फ एहसास से नहीं चलती,
कभी कभी उसे ज़िन्दगी भी चाहिए जीने के लिए…
मैंने बात की, तो फिर वो पहली सी बात होने लगी,
जो दूरी महसूस हो रही थी, फिर से मुलाकात होने लगी,
लगा मोहब्बत अब भी वही है, सिर्फ थोड़ी सी सूख गई थी,
प्यार का मौसम आया, और फिर बारिश होने लगी…
पहले रोज़ का सिलसिला चलता रहा,
फिर धीरे-धीरे वक्त बदलता रहा,
पहले हर दिन बात, फिर एक दो दिन का इंतजार,
और अब एक हफ्ता, दो हफ्ता, बस एक मजबूर प्यार…
कहा उसने—घर का मोबाइल नहीं मिलता,
इसलिए हमसे बात नहीं होती,
पर दिल ने कहा—मोहब्बत जो सच्ची हो,
उसे वक्त की ज़रूरत नहीं होती…
मैंने फिर भी यकीन किया, क्योंकि मोहब्बत थी,
वो सिर्फ एक नाम नहीं, मेरी पहचान थी,
मेरा दिल उसका हिस्सा था, मेरी जान भी उसी की थी,
मेरी रूह बस उसमें बसी थी, जो मैं था, वो भी वही थी…
एक साल दूर रहा, तो मुलाकात भी कम हो गई,
पर जैसे ही सुना कि लौट रहा हूँ, मोहब्बत फिर जाग गई,
जो पहले वक्त नहीं था एक कॉल के लिए,
अब रोज़ बात होने लगी, दिल में एक बेचैनी जाग गई…
मुझे न सच का ग़म था, न झूठ का डर,
बस एक ही तमन्ना थी—वो रहे उम्र भर,
मुझे न फासलों की फ़िक्र थी, न वक्त की मजबूरी,
मेरी मोहब्बत सिर्फ उसकी साथ की थी, बस इतनी सी ज़रूरी…
वो फिर से वैसे ही बात करने लगी,
जैसे पहले प्यार की कहानी थी बनी,
पर एक बात जो दिल में चुभी थी कहीं,
उसे सुनने के लिए मैंने एक नई राह चुनी…
वो छुप-छुप के ही सही, पर बात करती रही,
मोहब्बत के जज़्बात उसकी आँखों से बरसते रहे,
जो उसके साथ था, उसने भी समझा प्यार का एहसास,
अपने कॉल को काट कर दिया, ताकि हम बात कर सकें आज…
मोहब्बत का एक नया इम्तिहान दिया,
अपना फोन उसके हाथों में दिया,
कहा—अब कोई बहाना नहीं, कोई दूरी नहीं,
बस हर दिन मोहब्बत की एक नई रोशनी बनी रहे…
जिस मोहब्बत के लिए अपना फोन दे दिया,
वक्त ने उसी बात को धीरे-धीरे मिटा दिया,
पहले हर दिन आवाज़ सुनाई देती थी,
अब फोन होने के बाद भी दूरी महसूस होती थी…
दिल ने पूछा—क्यों दूर हो रही हो?
वक्त के साथ मोहब्बत क्यों कम हो रही हो?
जिस फोन के लिए पहले दिन रात तड़पती थी,
आज वो हाथों में होते भी बेकार हो रही हो…
Mohabbat Ke Raaste Intezaar Ki Raat (मोहब्बत के रास्ते इंतजार की रात)
मोहब्बत पे मेरा शक कभी न था,
लोगों की बातें भी कभी मानी न थी,
पर जब दिल ने महसूस किया कुछ बदला है,
तो खुद से भी एक जंग छेड़ ली…
सवाल कर सकता था, पर खोना नहीं चाहता था,
दिल रो रहा था, पर मोहब्बत तोड़ना नहीं चाहता था,
वो चाहे जितना भी दूर हो जाए, फर्क नहीं पड़ता,
मुझे सिर्फ उसका साथ चाहिए था, चाहे जैसे भी मिलता…
एक हफ्ता गुज़ार गया ख़ामोशी के साए में,
फोन भी नहीं बजता, बस यादें आती हैं रातों में,
पर दिल ने कहा—वो नहीं छोड़ सकती मुझे,
मोहब्बत जो सच्ची हो, उसका असर हमेशा रहता है…
एक हफ्ता गुज़ार गया, पर दिल का सुकून छुप गया,
उसकी खबर न मिली, तो एक बेचैनी उठ खड़ी,
मुझे किसी और की बात नहीं सुननी थी,
मुझे उसी की ज़ुबान से उसका हाल जानना था…
मोहब्बत मैंने निभाई, वो गुस्से में फोन जला गई,
पर मैंने फिर भी कहा—कोई बात नहीं,
बात करनी हो तो दूसरे फोन से कर लेना,
मैं जब आऊँगा, तो एक नया लेकर आऊँगा…
मुझे लगा कहीं कुछ बदल गया है,
उसके लफ़्ज़ों में पहले जैसा प्यार नहीं रहा है,
इसलिए मैंने कह दिया—अगर कोई और मिला हो,
तो मैं मोहब्बत से खुद को मिटा दूँगा…
मैंने कहा—अगर कोई और है तो बता दो,
उसने कहा—ऐसा कुछ भी नहीं है,
और कुछ दिन बाद खबर आई,
कि वो किसी और के साथ भाग गई…
मैं मोहब्बत का एक बेजान शहीद बन गया,
सामने मेरी दुनिया किसी और की हो गई,
मैं खुद को संभालता या मोहब्बत को,
बस चुप-चाप एक लाश की तरह खड़ा रहा…
मोहब्बत सिर्फ पाने का नाम नहीं,
मैंने तो बस उसकी खुशी चुनी,
अगर वो मुझे नहीं चाहती,
तो मोहब्बत के नाम पे उससे क्यों रोकूं?
वो सामने आई, तो दिल का हाल बेचैन हो गया,
पर जुबान खुद ही चुप हो गई…
मुझे सिर्फ उसकी खुशी से मतलब था,
इसलिए मोहब्बत को दिल में दबा के चल दिया…
उसने भी महसूस किया, मैंने भी,
पर बीच में मोहब्बत की एक छुपी हुई दीवार थी,
मुझे लगा अभी नहीं, बाद में पूछेंगे,
पर शायद ‘बाद में’ का वक्त कभी आता ही नहीं…
मैं न सही, मोहब्बत तो रहे,
उसके दिल में मेरी एक जगह तो रहे…
मैं बस यही सोचता रहा,
कि एक दिन वो महसूस करेगी,
के एक सच्चा आशिक कभी दूर नहीं होता…
उसके दिल में भी आग लगी थी,
पर उसके हाथ किसी और के हाथों में थे…
मैं इंतजार करता रहा एक एहसास का,
पर शायद उसका नया मोहब्बत उसकी जुबान पे ताला लगा चुका था…
13 अक्टूबर, शाम के 4 बजे,
मोहब्बत के शहर में आखिरी बार धूप बिखरी थी…
एक पल में सब कुछ खत्म हो गया,
और मैं सिर्फ एक याद बन कर रह गया…
एक दिन जो ज़िन्दगी भर का दुख दे गया,
एक शाम जो मोहब्बत के चिराग़ बुझा गई…
न भूल सकता हूँ, न बदल सकता हूँ,
बस हर साल उस दिन अपने दुख के साथ जीता हूँ…
Agar Waqt Milta (अगर वक्त मिलता)
मैं जी रहा हूँ बस उस पल के इंतजार में,
कि एक दिन वो वापस आए, अपनी गलती महसूस करे…
अगर ज़िन्दगी के आखिरी मोड़ पर भी यह हो जाए,
तो मोहब्बत जीत जाएगी, और मैं खुशी से अलविदा कह जाऊँगा…
अभी तक नहीं आई, पर एक दिन लौटेगी,
यह यकीन मोहब्बत के चिराग़ की तरह जल रहा है…
चाहे वक्त कितना भी गुजर जाए,
मैं वहीं खड़ा रहूँगा, उस एक पल के इंतजार में…
मोहब्बत माफ़ करना जानती है,
वो लौट आए तो फिर शिकायत कैसी…
मैं सिर्फ उसका था, उसका हूँ, और उसका ही रहूँगा,
बस एक पल के लिए भी आए, तो भी उसे अपना लूंगा…
बस एक बार उससे पूछना है,
कि क्यों उसने बीच रास्ते में छोड़ दिया…
ना गुस्सा है, ना शिकायत,
सिर्फ उसके दिल का सच सुनने की तमन्ना है…
.
अगर जवाब सच्चा होगा,
तो मैं हर दुख, हर आँसू भूल जाऊँगा…
बस एक बार उसके दिल का सच सुनना चाहता हूँ,
फिर उसी मोहब्बत से गले लगा लूंगा…
अगर सच दुख दे भी गया,
तो भी उसे दिल से माफ़ कर दूँगा…
मोहब्बत सिर्फ मिलने का नाम नहीं,
कभी कभी किसी को खुशी से छोड़ देना भी प्यार होता है…
हर दिन सूरज ढलता है,
और मैं उसके लौटने की रोशनी का इंतजार करता हूँ…
दिल उम्मीद से भरा है, आँखें रास्ते पे,
चाहे देर लगे, पर वो एक दिन जरूर आएगी…
अगर ज़िन्दगी भर भी ना आए,
तो भी यह मोहब्बत ज़िंदा रहेगी…
मेरा प्यार किसी शर्त का मोहताज नहीं,
वो आए या ना आए, बस इंतजार रहेगा…
मोहब्बत अगर सच्ची हो,
तो न बेवफाई उसे मिटा सकती है, न वक्त…
एक दिन आएगा, चाहे यह दुनिया समझे या न समझे,
मेरी मोहब्बत अमर थी, अमर है, और अमर रहेगी…